"बारिश की फुहार..."
कभी कभी दिल करता है, की बन जाएं बारिश की बूंदे छन से छनक जाएं उनमुक्त होकर बह जाएं बन के सावन की बहार.. मचल जाएं और बह जाएं, नहरों में नदियों में और मिल जाएं अपने अस्तित्व के सागर में कहीं। और पा जाएं अपने जीवन का सार.... लेकिन क्या करें जीवन ने बना दिया है आवारा बादल, बहते रहते हैं जो आकाश में, शुष्क और बंजर... परिस्थितियों की जलती धूप में, बस भटकते रहते हैं दर बदर.... और जब भी बहने का मन करता है... आंखो से आंसू बन कर बह जाती हैं मेरे सपनो की "बारिश की फुहार"...!!!